scriptगुरु के सान्निध्य से भवसागर भी हो सकता पार | How to worship guru on guru purnima muhurat 2017 | Patrika News

गुरु के सान्निध्य से भवसागर भी हो सकता पार

Published: Jul 09, 2017 10:51:00 am

गुरु पूर्णिमा विशेषः शास्त्रों में कहा गया है कि मां के बाद केवल गुरु ही है

guru purnima puja muhurat

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गुरु पूर्णिमा 9 जुलाई को है। शास्त्रों में कहा गया है कि मां के बाद केवल गुरु ही है, जिसके सान्निध्य से भवसागर पार किया जा सकता है। जीवन मूल्यों के पतन से यदि आज कोई सांस्कृतिक व्यवस्था रोक सकती है तो वह है गुरु-शिष्य परम्परा। इसके माध्यम से ही सशक्त समाज का निर्माण हो सकता है।

गुरु कौन हो, कैसा हो, इस पर भारतीय दर्शन कहता है, ‘गुरु विशारद् ब्रह्मनिष्ठं श्रोत्रियं यानी जो श्रुति का, शब्द ब्रह्म का निष्णात ज्ञाता हो, तत्त्वदर्शी हो, आचरण की दृष्टि से श्रेष्ठ ब्राह्मण हो तथा शिष्य को अपने संरक्षण में लेकर शक्तिपात का सामथ्र्य रखता हो, ऐसा व्यक्ति ही सद्गुरु होने की पात्रता रखता है। वेदों में गुरु के पांच स्वरूप बताए गए हैं-मृत्यु, वरुण, सोम, औषधि और पय।

मृत्यु : पात्र यदि पहले से भरा होगा तो उसमें जो कुछ डाला जाएगा, पात्र में नहीं पहुंचेगा। इसी तरह गुरु शिष्य को अपनी शरण में लेने से पूर्व उसके मन में पूर्व संचित धारणाओं को नष्ट करता है। पूर्व संचित धारणाओं को खाली करना ही मृत्यु है। इस तरह गुरु पूर्व मान्यताओं को नष्ट कर शिष्य को नई आकृति देता है।

वरुण : जब शिष्य पूर्ण समर्पण को तैयार हो जाता है, उसमें शिष्यत्व का अंकुरण हो जाता है तो गुरु अपना स्नेह वाला ‘वरुण’ रूप प्रकट करता है। वरुण पाशों के देवता कहे जाते हैं। जिस तरह वे अपने पाशों से सारे संसार को आवृत्त किए रहते हैं, उसी तरह गुरु भी अपने स्नेेहरूपी पाश से शिष्य को आच्छादित किए रहता है। सद्गगुरु शिष्य को वरुण रूप में त्रिविध बंधनों से मुक्त करता है।

सोम : वेदों में गुरु का अगला रूप ‘सोम’ बताया गया है। सोम यानी चन्द्रमा यानी शीतलता। जिस तरह चन्द्रमा अपनी चांदनी से सबको आह्लादित करता है, उसी तरह एक सच्चे गुरु का सोम वाला स्वरूप सभी शिष्यों में हर्ष शांति व प्रसन्नता का संचार करता है।

औषधि : जब गुरु को लगता है कि मेरा शिष्य उन्नति को अहंकार में न बदल दे या अभिमान न कर बैठे, तो वे विकारों को नष्ट करने के लिए अपना औषधि रूप प्रकट करते हैं। शिष्य भी गुरुरूपी औषधि के निकट पहुंचने पर समस्त भवरोगों से आसानी से मुक्त हो जाता है।

पय : गुरु अमृत की निर्झरणी है, प्रकाश का अवतरण है जिसको पीकर शिष्य का जीवन प्रकाशित होता है। वेद कहते हैं, गुरु पय रूप है। इस शुभ दिन शिष्य के जीवन में यदि सद्गगुरु के ये पांच वैदिक स्वरूप यदि हृदयंगम हो जाएं तो समझना कि भवसागर से तर गए।
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