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सुप्रीम कोर्ट मुंबई के डांस बारों में पैसे उड़ाने की इजाजत नहीं देना चाहता क्योंकि यह महिलाओं के गौरव

Aug 31, 2016 / 09:29 pm

मुकेश शर्मा

Supreme court

Supreme court

सुप्रीम कोर्ट मुंबई के डांस बारों में पैसे उड़ाने की इजाजत नहीं देना चाहता क्योंकि यह महिलाओं के गौरव और भारतीय सभ्यता के खिलाफ है। अदालतें इससे पहले भी महिलाओं पर अत्याचारों के खिलाफ व उनके सम्मान को लेकर न सिर्फ चिंतित रही हैं बल्कि ऐतिहासिक फैसले भी दिए हैं। लेकिन क्या सिर्फ बार बालाओं पर पैसे उड़ाने को ही महिलाओं के सम्मान से खिलवाड़ माना जाए? शराब पीते लोगों के सामने नाचने को क्या सम्मान से खिलवाड़ नहीं माना जाए? यह इजाजत दी जाए या नहीं लेकिन इस हकीकत से तो मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि बार में महिलाएं आखिर नाचती तो पैसे के लिए ही हैं।

हो सकता है कि बार डांसर में से अधिकांश महंगे शौक पूरा करने के लिए ऐसा करती हों। ऐसी लड़कियों की भी कमी नहीं होंगी जिन्हें परिवार का पेट पालने के वास्ते अपमान के घूंट पीकर नाचना पड़ता है। मुंबई में ग्यारह साल पहले जब डांस बार पर पाबंदी से लगा था कि ये अध्याय बंद हो चुका है। लेकिन लंबी अदालती लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ डांस बार शुरू करने की इजाजत दे दी। न्यायालय महिलाओं की आजादी से जोड़कर देख रहा है लेकिन इसके दूसरे पहलुओं पर भी गौर करना जरूरी है। बीते ग्यारह सालों में महाराष्ट्र सरकार से लेकर तमाम सामाजिक संगठनों ने बार को बंद करने को लेकर तमाम तर्क दिए लेकिन इसमें काम करने वाली लड़कियों के लिए विकल्प नहीं सुझाए। विकल्प मिले तो बार डांसर लड़कियों में से अधिकांश यह काम छोड़ सकती हैं।


ये स्वीकार करने में कोई परहेज नहीं होना चाहिए कि ऐसे डांस बार अक्सर अपराध के अड्डों में तब्दील होते रहते हैं। बात अकेेले मुंबई की नहीं, पूरे देश की महिलाओं के सम्मान की है। देश की सर्वोच्च अदालत इस पर जो भी फैसला सुनाए, उसमें तमाम पहलुओं को अवश्य शामिल किया जाना चाहिए।

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