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रीयल एस्टेट में मंदी, रिफाइनेंसिंग के जोखिम में फंसा 30 हजार करोड़

Published: Nov 22, 2015 04:36:00 pm

Submitted by:

Jyoti Kumar

देश में रियलिटी क्षेत्र की सुस्ती बरकरार है। तैयार मकानों के लिए खरीददार का इंतजार बढ़ता जा रहा है और इस कारण रियलिटी क्षेत्र को बैंकों द्वारा दिए गए 30 हजार करोड़ रुपए के ऋण  रिफाइनेंसिंग  के जोखिम में हैं। 

देश में रियलिटी क्षेत्र की सुस्ती बरकरार है। तैयार मकानों के लिए खरीददार का इंतजार बढ़ता जा रहा है और इस कारण रियलिटी क्षेत्र को बैंकों द्वारा दिए गए 30000 करोड़ रुपए के ऋण रिफाइनेंसिंग  के जोखिम में हैं। 

साख निर्धारक एजेंसी क्रिसिल की एक रिपोर्ट के अनुसार, सबसे बुरी स्थिति उत्तर भारत में है, जहां तैयार मकानों को बेचने में डेवरलपरों को औसतन 58 महीने का समय लग रहा है।

वहीं, पश्चिम भारत में 48 महीने के इंतजार के बाद खरीददार मिल रहे हैं। दक्षिण भारत में स्थिति कुछ बेहतर है, जहां इंतजार का औसत समय 22 महीने का है। 

देश के रियलिटी क्षेत्र में 95 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाले 25 डेवलपरों के अध्ययन के आधार पर क्रिसिल ने बताया कि आवासीय परियोजनाओं की बिक्री में सुस्ती के कारण चालू वित्त वर्ष में उनके द्वारा लिया गया ऋण 25 फीसदी बढ़कर 61500 करोड़ रुपये पर पहुंच गया है। 

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इसमें 30000 करोड़ रुपये के कर्ज पर रिफाइनेंसिंग का जोखिम है। रिफाइनेंसिंग के जोखिम से तात्पर्य यह है कि डेवलपर इन परियोजनाओं के लिए पूर्व में लिए गए ऋण की अदायगी के लिए पूंजी नहीं जुटा पा रहे हैं या उन्हें पूंजी मिल भी रही है तो उसकी ब्याज दर काफी ऊंची है।

क्रिसिल की रिपोर्ट के अनुसार, बैंकों से ऋण लेकर शुरू की गई परियोजनाओं में डेवलपरों की दुविधा दोहरी है। ग्राहक नहीं मिलने से परियोजना आगे जारी रखने के लिए पूंजी नहीं मिल पा रही है। ऐसे में उनके पास दो ही विकल्प हैं- या तो परियोजना अधूरी छोड़ दी जाए या उसे पूरा करने के लिए बैंकों से और कर्ज लिया जाए। 

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परियोजना अधूरी छोडऩे पर न तो वे बैंक का कर्ज चुका पाएंंगे, न ही परियोजना में फंसी पूंजी पर कोई रिटर्न मिलेगा। इसलिए वे ज्यादा ब्याज दरों पर और कर्ज लेने के लिए मजबूर हैं। 

रिपोर्ट में उम्मीद जताई गई है कि दिल्ली तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) को छोड़कर आवासीय परियोजनाओं की मांग नकारात्मक से सुधरकर कुछ सकारात्मक होगी। दिल्ली-एनसीआर के बारे में कहा गया है कि यहां मांग सरकारी प्रयासों और वृहत्तर आर्थिक परिदृश्यों पर निर्भर करती है। 

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क्रिसिल रेटिंग्स की निदेशक सुष्मिता मजूमदार के अनुसार, ‘रिफाइनेंसिंग के जोखिम का सामना कर रहे इन 25 बड़े डेवलपरों में अधिकतर दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के हैं। पिछले साल तक बैंकों ने इनकी पूंजी जरूरतों का 90 प्रतिशत कर्ज देकर पूरा किया है, लेकिन चालू वित्त वर्ष में पहली बार इसमें तकरीबन पांच प्रतिशत की गिरावट अपेक्षित है।

क्रिसिल रिसर्च की निदेशक बिनाइफर जेहानी ने कहा कि सरकार द्वारा घोषित इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं से मुंबई जैसे शहरों को फायदा होगा जहां संपर्क साधन बेहतर होंगे। वहीं, दूसरी ओर, मुख्यत: निवेशक आधारित एनसीआर में मांग में सीमित सुधार होगा।

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