4000 की आबादी वाला यह गांव साइबर सिटी से 28 किलोमीटर दूर बाघनकी नाम से जाना जाता है। सावन माह में आमतौर पर पहने जाने वाले भगवा रंग से भी ग्रामीण परहेज कर रहे हैं।
गुरुग्राम: आस्था के नाम पर एक ओर पूरे देश में कांवड़िए शिवलिंग पर जलाभिषेक के लिए सैकड़ों किलोमीटर दूर से गंगाजल ला रहें हैं। वहीं, गुरुग्राम का एक गांव ऐसा भी है जहां भगवान शिव को आठ वर्ष से गंगाजल का इंतजार है। यहां के भक्त अपने भगवान शिव से इतने रूठे हुए हैं कि मंदिर में दर्शन करने भी नहीं जा रहे हैं। करीब 4000 की आबादी वाला यह गांव साइबर सिटी से 28 किलोमीटर दूर बाघनकी नाम से जाना जाता है। सावन माह में आमतौर पर पहने जाने वाले भगवा रंग से भी ग्रामीण परहेज कर रहे हैं। गांव के लोगों के रूठने और भगवान शिव से दूरी के पीछे एक भयावह कहानी है।
गांव में नहीं होता जलाभिषेक
आज से करीब आठ वर्ष पहले गांव में सावन आते ही लोग शिवभक्ति में लीन हो जाते थे। जगह-जगह पर पूजा अर्चना होती थी और जलाभिषेक के लिए लोग गांव से सैकड़ों किमी दूर गंगोत्री, गोमुख व हरिद्वार से गंगाजल लाने के लिए भी जाते थे, लेकिन एक घटना ने यहां के लोगों की भगवान शिव से आस्था को डिगा दिया। अब लोग भगवान को तो मानते हैं, लेकिन उनके नाम पर कोई पूजा अर्चना व जलाभिषेक इस गांव में नहीं करते हैं।
कांवड़ लेने गए युवकों की हो गई थी मौत
वर्ष 2009 में बाघनकी गांव से कांवड़ लेने गए 22 युवाओं का जत्था उत्तराखंड में सड़क हादसे का शिकार हो गया था। इस हादसे में 10 परिवारों के चिराग एक साथ बुझ गए थे। ग्रामीणों के मुताबिक करीब दर्जनभर विधवाओं ने मनहूसी के चलते गांव ही छोड़ दिया। ग्रामीण अपने बेटों व पोतों के जाने का दर्दनाक मंजर आज तक नहीं भूला पाए हैं। उनके सामने हादसे का जिक्र करते ही आंखों के आंसू रुकने का आज भी नाम नहीं ले रहे है।
ग्रामीणों ने बंद किया मंदिर
ग्रामीणों ने इस हादसे के बाद शिव मंदिर को बंद कर दिया और आज भी मंदिर का निर्माण आधा अधूरा पड़ा हुआ है। केवल मंदिर की नींव व डीपीसी भरकर पिलर खड़े किए हैं। आठ साल बाद अब लैंटर डाला गया है।
एक ही परिवार के चार युवक हुए थे हादसे का शिकार
एक ही परिवार के चार युवा इस हादसे में मारे गए थे। यादव परिवार के सबसे उम्रदराज 96 वर्षीय सरदारा सिंह बताते हैं कि आज भी अपने चार पोतों के जाने का गम नहीं भुला पाया हूं। हादसे ने उनकी आत्मा को भी झकझोर कर रख दिया है। वह अपने पोतों की फोटो को ही सीने से लगाकर रो पड़े। उन्हें उम्र के इस पड़ाव में दिखाई भी कम देने लगा है। जिससे वह अब अपने पोतों की फोटो को भी नहीं निहार सकते हैं। वह कहते हैं कि मेरी मौत भी नहीं आ रही है। जिससे मरने के बाद इस पीड़ा को भुला सकूं।
ग्रामीण कर रहे दुबारा मंदिर निर्माण पर विचार
इस हादसे को आठ साल बीत गए, लेकिन आज भी गांव के मंदिर में शिवलिंग पर जलाभिषेक का इंतजार है। पहले जिस मंदिर में बम-बम भोले के नारों के साथ कांवड़ चढ़ाई जाती थी, आज वहां ग्रामीण जाने से कतराते हैं। ग्रामीण इस हादसे को झेलने के बाद अब मंदिर का पुन: निर्माण करवाने की सोच रहे हैं ताकि ग्रामीण दोबारा से मंदिर में पूजा-अर्चना कर सके। मंदिर निर्माण पूरा होने पर शिवलिंग स्थापित होगा।
नहीं बना उन युवाओं की याद में स्टेडियम
उन 22 युवाओं की याद में गांव में स्टेडियम बनवाने की बात कांग्रेस सरकार के मंत्री कहकर गए थे। हादसे में मरने वाले युवाओं के नाम पर स्टेडियम बनवाने की मांग को पूरा कराने का आश्वासन भी दिलाया गया था। लेकिन हुड्डा सरकार के बाद भाजपा सरकार के तीन साल बीत जाने के बाद भी इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया है।