कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि रेलवे ने यह स्वीकार किया है कि खानपान का ठेका देने में ठेकेदार से लाइसेंस शुल्क की दरें काफी ऊंची व व्यावहारिक नहीं थीं।
नई दिल्ली: नियंत्रक महालेखापरीक्षक (कैग) ने रेल यात्रियों को परोसे जाने वाले खाने पर गंभीर सवाल उठाया है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि स्टेशनों और ट्रेनों में परोसे जाने वाला खाना खाने योग्य नहीं है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि खराब खाने के लिए रेलवे की कैटरिंग नीति जिम्मेदार है। शुक्रवार को संसद में पेश हुई कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि रेलवे में खाना बनाने में साफ सफाई का बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखा जाता है जिसके कारण बेस किचन व पेंट्रीकार में गंदगी रहती है और कॉकरोच-चूहे घूमते हैं।
लिया जाता है अधिक पैसा
इसके अलावा भी कैग ने यात्रियों को होने वाली असुविधा का भी जिक्र किया है। रिपोर्ट में कहा है कि यात्रियों को घटिया खाना कम मात्रा में परोसा जाता है, और तय मूल्य से अधिक पैसा लिया जाता है। स्टेशन परिसर और ट्रेन में मिलने वाले खाने की स्थिति एकसमान है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि खानपान नीति में बार बार परिर्वतन करने के कारण ऐसी स्थिति पैदा हुई है।
शु्ल्क दरें काफी ऊंची
कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि रेलवे ने यह स्वीकार किया है कि खानपान का ठेका देने में ठेकेदार से लाइसेंस शुल्क की दरें काफी ऊंची व व्यावहारिक नहीं थीं। इसके चलते जोनल रेलवे को मोटा पैसा लाइसेंस फीस के रूप में मिला।
रेलवे ने कहा गुणवत्ता में हुआ सुधार
रेलवे के एक अधिकारी ने कैग की रिपोर्ट पर अनौपचारिक बातचीत में बताया कि कैग की रिपोर्ट पुराने तथ्यों पर आधारित है और रेलवे ने अपनी नई कैटरिंग पॉलिसी फरवरी 2017 में जारी किया है। जिसके बाद खान-पान की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। अधिकारी के मुताबिक अभी तक 40 हजार से ज्यादा निरीक्षण हो चुके हैं ताकि खान-पान की गुणवत्ता को और सुधारा जा सके।