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4 गैर-भाजपा शासित राज्य निजता के अधिकार के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे

कर्नाटक और पश्चिम बंगाल समेत चार गैर-भाजपा शासित राज्यों ने निजता के अधिकार को (संविधान के तहत) मौलिक अधिकार घोषित करने के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई में हस्तक्षेप करने की शीर्ष अदालत से बुधवार को अनुमति मांगी। 

Jul 26, 2017 / 04:08 pm

shachindra श्रीवास्तव

Supreme Court

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नई दिल्ली। कर्नाटक और पश्चिम बंगाल समेत चार गैर-भाजपा शासित राज्यों ने निजता के अधिकार को (संविधान के तहत) मौलिक अधिकार घोषित करने के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई में हस्तक्षेप करने की शीर्ष अदालत से बुधवार को अनुमति मांगी। इन दो राज्यों के अलावा कांग्रेस शासित पंजाब और पुडुचेरी ने भी इस मुद्दे पर केंद्र सरकार के विपरीत रूख अपनाया है। 


यह आम कानूनी अधिकारः केंद्र
इस मामले में केंद्र ने 19 जुलाई को शीर्ष न्यायालय में कहा था कि निजता का अधिकार मूलभूत अधिकारों की श्रेणी में नहीं आ सकता क्योंकि वृहद पीठों के बाध्यकारी फैसलों के अनुसार, यह एक आम कानूनी अधिकार है।


तकनीकी प्रगति के कारण इस पर नए सिरे से विचार हो
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष इन चार राज्यों का पक्ष रखा। सिब्बल ने कहा कि तकनीकी प्रगति को देखते हुए आज के दौर में निजता के अधिकार और इसकी रूपरेखा पर नए सिरे से विचार करने की जरूरत है। पीठ के समक्ष उन्होंने कहा, ‘निजता एक परम अधिकार नहीं हो सकता। लेकिन यह एक मूलभूत अधिकार है। न्यायालय को इसमें संतुलन लाना होगा।’ मामले में सुनवाई जारी है।


सुप्रीम कोर्ट ने किया 9 सदस्यीय संविधान पीठ का गठन
संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस आरके अग्रवाल, जस्टिस रोहिन्टन फली नरिमन, जस्टिस अभय मनोहर सप्रे, जस्टिस धनन्जय वाई. चन्द्रचूड, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर शामिल हैं। निजता के अधिकार से संबंधित यह मामला पांच सदस्यीय पीठ की ओर से वृहद पीठ को स्थानांतरित कर दिए जाने पर शीर्ष न्यायालय ने 18 जुलाई को नौ सदस्यीय संविधान पीठ का गठन किया था।

याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि बायोमीट्रिक जानकारी का संग्रहण और उसे साझा करना, जो कि आधार योजना के तहत जरूरी है, निजता के ‘मूलभूत’ अधिकार का हनन है।


‘व्हाट्सएप की नई प्राइवेसी पॉलिसी से होगा निजता का हनन’
केंद्र ने बीते शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि व्यक्तिगत डेटा एक व्यक्ति के जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा होता है और इंटरनेट सेवा प्रदाताओं या सोशल नेटवर्किंग साइट्स द्वारा स्वतंत्र रूप से साझा नहीं किया जा सकता है। बहस गोपनीयता के अधिकार के बारे में है और सर्वोच्च न्यायालय पहले ही सरकार द्वारा उठाए गए स्टैंड के विपरीत है, आधार मामलों में नागरिकों के पास गोपनीयता का मूल अधिकार नहीं है।


फेसबुक से साझा करना निजता के अधिकार का हनन
दरअसल, एक शख्‍स की ओर से दाखिल याचिका में व्हाट्सएप की नई प्राइवेसी पॉलिसी का विरोध किया गया है। उन्‍होंने याचिका में कहा गया है कि व्हाट्सएप की ओर से अपने यूजर्स की जानकारी फेसबुक से साझा करना निजता के अधिकार का हनन है। 


व्यावसायिक फायदे के लिए डाटा शेयर करना गलत
केंद्र सरकार ने याचिकाकर्ता की बात का समर्थन करते हुए कहा किसी के निजी डाटा को व्यावसायिक फायदे के लिए शेयर करना गलत है। एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पी एस नरसिम्हा ने कहा कि निजी डाटा जीवन के अधिकार का ही एक पहलू है। सुनवाई के एडिशनल सॉलिसिटर ने कहा, ‘मेरा (व्यक्तिगत) व्यक्तिगत डेटा मेरे लिए अंतरंग है यह सम्मान के साथ जीवन जीने का मेरे अधिकार का एक अभिन्न अंग है। यदि किसी व्यक्तिगत और इंटरनेट सेवा प्रदाता के बीच कोई अनुबंध इसे साझा करने के लिए होता है, तो यह व्यक्ति का अधिकार (अनुच्छेद 21 के तहत) है। ऐसे में राज्य को इस तरह के डेटा को बांटने में हस्तक्षेप और विनियमन करना होगा। उधर व्हाट्सएप की तरफ से पेश सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि टेलिकॉम कंपनियां व्हाट्सएप जैसी सेवाओं के विस्तार से घबरा कर इस तरह की याचिकाएं दाखिल करवा रही हैं।


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