25 फीसदी टीके डॉक्टर-मरीज के पास पहुंचने से पहले ही हो जाते हैं खराब
Published: Jul 01, 2016 01:26:00 pm
टीके के संरक्षण के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय 27 हजार कोल्ड चेन प्वाइंट
खोलने जा रहा है। मंत्रालय रियल टाइम इलेक्ट्रोनिक वेक्सिन इंटेलीजेंस
नेटवर्क भी बनाने जा रहा है ताकि टीके सुरक्षित रह सके
नई दिल्ली: देश में करीब 25 फीसदी टीके डॉक्टर और मरीज के पास पहुंचने से पहले ही खराब हो जाते हैं। यह सब सप्लाई चेन के अभाव और प्रबंधन सिस्टम की कमी की वजह से होता है। ज्यादतर टीके हीट सेंसटिव होते हैं। इन टीकों को 2 से 8 डिग्री सेल्सियस तापमान में सुरक्षित रखना पड़ता है। अगर इतने तापमान में नहीं रखा गया तो ये टीके या तो खराब हो जाते हैं या फिर इनका प्रभाव कम हो जाता है।
स्वास्थ्य मंत्रालय खोलेगा 27 हजार कोल्ड चेन प्वाइंट
स्वास्थ्य मंत्रालय के टीकाकरण तकनीकी सहायता इकाई का कहना है कि हर टीके के हिसाब से यह दर अलग हो सकती है। लेकिन स्पलाई के हिसाब से देखा जाय तो करीब 25 फीसदी टीके डॉक्टर और मरीज तक पहुंचने से पहले ही खराब हो जाते हैं। बीसीजी में सबसे ज्यादा 50 फीसदी तक बर्बादी होती है। टीके की बर्बादी की दर हर राज्य के हिसाब से अलग हो सकती है। यह उस राज्य के कोल्ड स्टोरेज कैपिसिटी और इन्फ्रास्ट्रक्चर पर निर्भर करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राष्ट्र ने भी वेक्सिन की बर्बादी को रोकने के लिए चेन स्पलाई और कोल्ड स्टोरेज में सुधार की बात कही है। इस चुनौती से निपटने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय और ज्यादा कोल्ड चेन खोलने और मैनेज सिस्टम को सुधारने में लगा हुआ है। टीके के संरक्षण के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय 27 हजार कोल्ड चेन प्वाइंट खोलने जा रहा है। मंत्रालय रियल टाइम इलेक्ट्रोनिक वेक्सिन इंटेलीजेंस नेटवर्क भी बनाने जा रहा है ताकि टीके के मोबाइल तकनीकी के जरिए कोल्ड चेन के तापमान और वेक्सिन स्टॉक मैनेजमेंट को नियंत्रित किया जा सके।