मुखर्जी ने कहा कि समावेशन समतामूलक समाज का आवश्यक आधार है। विकास में पिछड़ों और वंचितों की भागीदारी सुनिश्चित करना होगा। एक आधुनिक राष्ट्र का निर्माण सभी पंथ और धर्म के लिए समानता के भाव से होता है।
नई दिल्ली: राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सोमवार को अपने कार्यकाल के अंतिम दिन देश को संबोधन में एक बार फिर सहिष्णुता की याद दिलाई। उन्होंने कहा कि सहिष्णुता सदियों से हमारी सामूहिक सोच में शामिल रहा है। इसी तरह उन्होंने विश्वविद्यालयों में जिज्ञासू प्रवृत्ति को बढ़ावा देने वाली व्यवस्था की भी वकालत की।
भारत की आत्मा सहिष्णुता में बसती है
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि भारत की आत्मा बहुलवाद और सहिष्णुता में बसती है। हमें सहिष्णुता से शक्ति प्राप्त होती है। सदियों के दौरान विचारों को आत्मसात कर हमारे समाज का बहुलवाद विकसित हुआ है। सार्वजनिक जीवन में बढ़ती हिंसा के खतरे का ध्यान दिलाते हुए उन्होंने कहा, ‘जन संवाद के विभिन्न पहलू हैं। हम तर्क-वितर्क कर सकते हैं। हम सहमत या असहमत हो सकते हैं। लेकिन विविध विचारों की आवश्यक मौजूदगी को नहीं नकार सकते। हमें सार्वजनिक जीवन को शारीरिक और बौद्धिक सभी तरह की हिंसा से मुक्त करना होगा।’
आधुनिक राष्ट्र निर्माण में सभी की भूमिका अहम
मुखर्जी ने कहा कि समावेशन समतामूलक समाज का आवश्यक आधार है। विकास में पिछड़ों और वंचितों की भागीदारी सुनिश्चित करना होगा। एक आधुनिक राष्ट्र का निर्माण सभी पंथ और धर्म के लिए समानता के भाव से होता है। विकास को वास्तविक बनाने के लिए यह जरूरी है कि सबसे गरीब व्यक्ति भी इसमें शामिल हो।
नए राष्ट्रपति को बधाई
इसी तरह उन्होंंने कहा, ‘हमारे विश्वविद्यालय सिर्फ रटने वालों की जगह नहीं बनें बल्कि जिज्ञासू प्रवृत्ति के लोगों की जगह बने।’ उन्होंने मंगलवार को शपथ ले रहे नए राष्ट्रपति
रामनाथ कोविंद को बधाई भी दी। साथ ही अपने कार्यकाल के बारे में कहा कि इस दौरान वे कितना सफल रहे यह इतिहास अपने निर्मम मापदंड से ही तय करेगा। संबोधन के बाद पीएम मोदी ने कहा कि प्रणब मुखर्जी के कार्यकाल में राष्ट्रपति भवन लोक भवन बन गया।