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12 वर्ष बाद मकर संक्रान्ति पर बना दुर्लभ संयोग, इन उपायों से पूरे साल रहेंगे मालामाल

Published: Jan 08, 2017 11:23:00 am

बारह वर्ष बाद शुभ संयोग के साथ संक्रान्ति काल आया है, इस पूरे दिन उदयकाल से अस्तकाल तक पुण्यकाल रहेगा

makar sankranti 2017

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भारतीय ज्योतिष के अनुसार सूर्य का एक राशि को छोड़कर दूसरी राशि में प्रवेश के समय को संक्रान्ति कहा जाता है। एक वर्ष में बारह संक्रान्तियां होती हैं जिनमें से छह दक्षिणायन एवं छह उत्तरायण कहलाती हैं। इस बार मकर संक्रान्ति 14 जनवरी को मनाई जाएगी क्योंकि सूर्य का धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश होगा।

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पौराणिक मान्यता के अनुसार सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होते ही उत्तरायण काल शुरू हो जाता है। मकर, कुम्भ, मीन, मेष, वृषभ तथा मिथुन राशि में सूर्य के परिभ्रमण की स्थिति उत्तरायण की मानी जाती है। उत्तरायण की ऊर्जा पंचमहाभूतों के लिए ऊर्जा निर्मित करती है। इस दृष्टि से उत्तरायण का विशेष महत्त्व है।

पर्वकाल में भागवत सप्ताह श्रवण भी शुभ
श्रीमद्भागवत के अनुसार उत्तरायण के सूर्य की प्रतीक्षा करते हुए भरतवंशी भीष्म ने देह का त्याग किया था। उत्तरायण के सूर्य की अनन्य कथाएं प्रचलित हैं। उनमें से एक श्रीमद्भागवत में, भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा अर्जुन को दिए गए गीतोपदेश में सूर्य की साधना तथा जैविक सफलता एवं आध्यात्मिक रहस्य को समझने के लिए दिशा निर्देशित किया है। यही कारण है कि मकर पर्वकाल में भागवत सप्ताह का पारायण श्रवण करना अत्यन्त पुण्यकारक माना गया है। पौराणिक मान्यता है कि देवताओं का प्रभात काल होने से ही मकर संक्रांति किए जाने वाला ‘दान’ सौ गुना हो जाता है।

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संक्रान्ति का धार्मिक महत्त्व

ध र्म शास्त्र के अनुसार सूर्य की मकर संक्रान्ति बारह माह में विशेष फल प्रदान करती है। सम्पूर्ण वर्ष सूर्य के मकर राशि में ये तीस दिन चारों पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) के लिए सिद्ध अनुगमन है। इसी दौरान इष्ट साधना की भी सिद्धि प्राप्त करने का यह संकल्पित समय है। मकर संक्रान्ति के पुण्यकाल में सफेद तिल मिश्रित जल से तीर्थ या निकट के नदी तट पर शुद्ध मनोभाव से स्नान करें।

यदि नदी तट पर जाना संभव नही है, तो अपने घर के स्नान घर में पूर्वाभिमुख होकर जल पात्र में तिल, दुर्वा, कच्चा दूध मिश्रित जल से स्नान करें। साथ ही समस्त पवित्र नदियों व तीर्थ का स्मरण करते हुए ब्रम्हा, विष्णु, रूद्र और भगवान भास्कर का ध्यान करें। साथ ही इस जन्म के पूर्व जन्म के ज्ञात अज्ञात मन, वचन, शब्द, काया आदि से उत्पन्न दोषों की निवृत्ति हेतु क्षमा याचना करते हुए सत्य धर्म के लिए निष्ठावान होकर सकारात्मक कर्म करने का संकल्प लें।

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ग्रह-गोचर में बनेगा नवम पंचम योग

पंचाग की गणना के अनुसार इस बार विशिष्ट संयोगों में बृहस्पति का सूर्य से पंचम दृष्टि संबंध तथा सूर्य का बृहस्पति से नवम दृष्टि संबंध बन रहा है। बारह वर्ष में आने वाले इस प्रकार के दृष्टि संबंध का विशेष लाभ लोगों को प्राप्त होता है। इस योग में सूर्य के साथ भगवान नारायण का भी ध्यान कर आराधना करनी चाहिए। इस दिन आदित्य हृदय स्त्रोत, सूर्य स्त्रोत, सूर्याष्टक आदि का पाठ करना भी श्रेष्ठ होता है। इनके पाठ से वंशवृद्धि पराक्रम में वृद्धि तथा परिवार का उत्कर्ष होता है।

महाकाल पर्व रहेगा शुभप्रद
इस बार माघ मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि पर शनिवार के दिन 14 जनवरी को प्रात: 7 बजकर 38 मिनट पर अश्लेषा नक्षत्र प्रीति योग एवं कर्क राशि के चंद्रमा के साक्षी में मकर लग्न में भगवान सूर्य नारायण का मकर राशि में प्रवेश होगा,चूंकि उदयकाल की साक्षी में होने वाले इस प्रवेशकाल का धर्म शास्त्रीय महत्त्व है। इस दृष्टि से मकर संक्रान्ति का महापर्वकाल विशेष महत्त्वपूर्ण माना जाता है। यह पर्व पुण्यकाल की दृष्टि से दिनभर रहेगा।

संक्रान्ति का नक्षत्र राक्षसी नाम से है। जो कमजोर वर्ग पशु पालक आदि के लिए शुभ प्रद रहेगी। यही नहीं रक्त वस्त्र, धनुष आयुध, लौहपात्र, पय भक्षण, गौरोचन, मृगवर्णी, कंचूकी, प्रथम यान, व्यापिनी उत्तर की ओर गमन करनेवाली ईशानदृष्ट के साथ पंन्द्रह मुहूर्त में बैठेगी। देखा जाए तो जियोलॉजिकल, बॉयोलॉजिकल एवं अर्थ मेट्रिक सिद्धांत शास्त्र के अनुसार रेडियो कार्बन विधि में सूर्य जब-जब मकर राशि में प्रवेश होता है, तो वह अगले मकर वर्ष के लिए प्राकृतिक नियम से जोड़कर संतुलन की स्थिति में लाता है।

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संक्रांन्ति पर स्नान बेहद जरूरी

देवीपुराण में लिखा है कि ‘जो व्यक्ति मकर संक्रांति के पवित्र दिन तीर्थ स्नान नहीं करता, वह सात जन्मों तक रोगी और निर्धन ही बना रहता है। मकर संक्रांति के दिन देवताओं के निमित्त तीर्थ में जाकर द्रव्य-सामग्री और पितरों के लिए जो भी पदार्थ दान दिए जाते हैं, उसे देवता और पितर हर्षित होकर स्वीकार कर लेते हैं।’ देवीपुराण में तो अकाल मृत्यु से बचने के लिए मकर संक्रांति को ‘दुर्गासप्तशती’ पाठ करने या विद्वान ब्राह्मण से करवाने का भी विधान बताया गया है।

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