scriptये हैं गोवर्धन पूजा की कथा तथा शुभ मुहूर्त, ऐसे करें पूजा | How to worship on Govardhan puja, shubh muhurat 2016 | Patrika News

ये हैं गोवर्धन पूजा की कथा तथा शुभ मुहूर्त, ऐसे करें पूजा

Published: Oct 31, 2016 11:16:00 am

दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा पर अन्नकूट बना कर भगवान कृष्ण तथा गोवर्धन पर्वत को भोग लगाया जाता है

govardhan puja muhurat

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दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। इस दिन अन्नकूट बना कर भगवान कृष्ण तथा गोवर्धन पर्वत को भोग लगाया जाता है। हिन्दू धर्मावलंबी घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन नाथ जी की अल्पना बनाकर उनका पूजन करते है। उसके बाद गिरिराज भगवान (पर्वत) को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अन्नकूट का भोग लगाया जाता है। आइए जानते हैं कि इन दिन पूजा का मुहूर्त क्या है और कैसे पूजा करनी चाहिए-

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ये हैं गोवर्धन पूजा के मुहूर्त

गोवर्धन पूजा के के लिए पंचाग, चौघड़िया अनुसार पूजा के मुहूर्त निम्न प्रकार हैं-

अमृत का चौघड़िया – सुबह 6.40 से 8.02 बजे
शुभ का चौघड़िया – सुबह 9.25 से 10.48 बजे तक
लाभ का चौघड़िया – दोपहर 2.56 से 4.19 बजे तक
अमृत का चौघड़िया – शाम 4.19 से 5.41 बजे तक

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ऐसे करें पूजा

सुबह जल्दी उठ कर शरीर पर तेल मलकर स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र धारण कर अपने इष्ट का ध्यान करें। इसके बाद अपने निवास स्थान या देवस्थान के मुख्‍य द्वार के सामने प्रात: गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाएं। फिर उसे वृक्ष, वृक्ष की शाखा एवं पुष्प इत्यादि से श्रृंगारित करें। इसके गोवर्धन पर्वत का अक्षत, पुष्प आदि से विधिवत पूजन करें।

इसके बाद गायों को विभिन्न अलंकारों, मेहंदी आदि से श्रृंगारित करें। इसके बाद उनका गंध, अक्षत, पुष्प से पूजन करें। इसके बाद नैवेद्य अर्पित कर निम्न मंत्र से प्रार्थना करें। शाम के बाद पूजित गायों से पूजित गोवर्धन पर्वत का मर्दन कराएं। फिर उस गोबर से घर-आंगन लीपें।

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ये हैं गोवर्धन पूजा से जुड़ी कहानी

श्रीमदभागवत के अनुसार द्वापर युग में लोग इंद्र देवता की पूजा करते थे। अनेकों प्रकार के भोजन बनाकर तरह-तरह के पकवान व मिठाइयों का भोग लगाते थे। यह आयोजन एक प्रकार का सामूहिक भोज का आयोजन है। उस दिन अनेकों प्रकार के व्यंजन साबुत मूंग, कढ़ी चावल, बाजरा तथा अनेकों प्रकार की सब्जियां एक जगह मिल कर बनाई जाती थीं। इसे अन्नकूट कहा जाता था। मंदिरों में इसी अन्नकूट को सभी नगरवासी इकट्ठा कर उसे प्रसाद के रूप में वितरित करते थे।

यह आयोजन इसलिए किया जाता था कि शरद ऋतु के आगमन पर मेघ देवता देवराज इंद्र को पूजन कर प्रसन्न किया जाता कि वह ब्रज में वर्षा करवाएं जिससे अन्न पैदा हो तथा ब्रजवासियों का भरण-पोषण हो सके। एक बार भगवान श्री कृष्ण ग्वाल बालों के साथ गऊएं चराते हुए गोवर्धन पर्वत के पास पहुंचे वह देखकर हैरान हो गए कि सैंकड़ों गोपियां छप्पन प्रकार के भोजन बनाकर बड़े उत्साह से उत्सव मना रही थीं। भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों से इस बारे पूछा। गोपियों ने बतलाया कि ऐसा करने से इंद्र देवता प्रसन्न होंगे और ब्रज में वर्षा होगी जिसमें अन्न पैदा होगा।

श्री कृष्ण ने गोपियों से कहा कि इंद्र देवता में ऐसी क्या शक्ति है जो पानी बरसाता है। इससे ज्यादा तो शक्ति इस गोवर्धन पर्वत में है। इसी कारण वर्षा होती है। हमें इंद्र देवता के स्थान पर इस गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। इस पर ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा आरंभ कर दी जिसे देवराज इंद्र ने अपना अपमान समझ क्रोधित हो गए और मेघों को ब्रज में सब कुछ तबाह कर देने का आदेश दिया।

मेघों के द्वारा भयावह तबाही होते देख भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा उंगली पर उठाकर छाता सा तान दिया। सभी ब्रज वासी अपने पशुओं सहित उस पर्वत के नीचे जमा हो गए। सात दिन तक मूसलाधार वर्षा होती रही। सभी ब्रजवासियों ने पर्वत की शरण में अपना बचाव किया। भगवान श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र के कारण किसी भी ब्रज वासी को कोई भी नुकसान नहीं हुआ।

यह चमत्कार देखकर देवराज इंद्र ब्रह्मा जी की शरण में गए तो ब्रह्मा जी ने उन्हें श्री कृष्ण की वास्तविकता बताई। इंद्र देवता को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ। ब्रज गए तथा भगवान श्री कृष्ण के चरणों में गिरकर क्षमा याचना करने लगे। सातवें दिन श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा तथा ब्रजवासियों से कहा कि आज से प्रत्येक ब्रजवासी गोवर्धन पर्वत की प्रत्येक वर्ष अन्नकूट द्वारा पूजा-अर्चना कर पर्व मनाया करें। इस उत्सव को तभी से अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा।

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