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नोटबंदी के कारण 15 लाख लोगों की नौकरी गयी, 60 लाख लोगों पर असर: Survey 

Published: Jul 20, 2017 10:00:00 am

Submitted by:

manish ranjan

नोटबंदी को लेकर सेन्टर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनोमी (सीएमआईई) की सर्वे में एक चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है। इस सर्वे के मुताबिक नोटबंदी के बाद से अबतक करीब 15 लाख लोगों को अपनी नौकरियां गंवानी पड़ी हैं। 

Unemployment due to Demonetization

Unemployment due to Demonetization

नई दिल्ली। नोटबंदी को लेकर सेन्टर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनोमी (सीएमआईई) की सर्वे में एक चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है। इस सर्वे के मुताबिक नोटबंदी के बाद से अबतक करीब 15 लाख लोगों को अपनी नौकरियां गंवानी पड़ी हैं। अगर एक कमाऊ शख्स पर घर के चार लोग आश्रित हैं तो इस लिहाज से पीएम नरेंद्र मोदी के एक फैसले से 60 लाख से ज्यादा लोगों को रोटी के लिए परेशान होना पड़ा है। सेन्टर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनोमी (सीएमआईई) ने सर्वे में त्रैमासिक वार नौकरियों का आंकड़ा पेश किया है। सीएमआईई के कंज्यूमर पिरामिड हाउसहोल्ड सर्वे से पता चलता है कि नोटबंदी के बाद जनवरी से अप्रैल 2017 के बीच देश में कुल नौकरियों की संख्या घटकर 405 मिलियन रह गई थी जो कि सितंबर से दिसंबर 2016 के बीच 406.5 मिलियन थी। यानी नोटबंदी के बाद नौकरियों की संख्या में करीब 1.5 मिलियन अर्थात 15 लाख की कमी आई।


रोजगार के आंकड़े निराशाजनक

देशभर में हुए हाउसहोल्ड सर्वे में जनवरी से अप्रैल 2016 के बीच युवाओं के रोजगार और बेरोजगारी से जुड़े आंकड़े जुटाए गए थे। इस सर्वे में कुल 1 लाख 61 हजार, एक सौ सड़सठ घरों के कुल 5 लाख 19 हजार, 285 युवकों का सर्वे किया गया था। सर्वे में कहा गया है कि तब 401 मिलियन यानी 40.1 करोड़ लोगों के पास रोजगार था। यह आंकड़ा मई-अगस्त 2016 के बीच बढक़र 403 मिलियन यानी 40.3 करोड़ और सितंबर-दिसंबर 2016 के बीच 406.5 मिलियन यानी 40.65 करोड़ हो गया। इसके बाद जनवरी 2017 से अप्रैल 2017 के बीच रोजगार के आंकड़े घटकर 405 मिलियन यानी 40.5 करोड़ रह गए। मतलब साफ है कि इस दौरान कुल 15 लाख लोगों की नौकरियां खत्म हो गईं।


86 फीसदी घटा नोट का चलन

नोट बंदी के कारण अचानक 86 फीसदी नोट चलन से बाहर हो गया था और लोगों को पैसे के लिए बैंकों और एटीएम के बाहर घंटों लाइनों में खड़ा रहना पड़ा था। इस वजह से शहर के हजारों मजदूरों के परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया। वहीं डिमांड में कमी के चलते इस दौरान कई यूनिटों ने अपने उत्पादन कम कर दिए थे। जिससे निराशा का माहौल और बढ़ सकता है और अगर बैंकों का एनपीए बढ़ा तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। 

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