बुधवार को सरकार ने कैबिनेट बैठक में एचपीसीएल-ओएनजीसी के विलय को मंजूरी दे दी। प्रधानमंत्री के अध्यक्षता में हुई बैठक में इस विलय को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी गई।
नई दिल्ली। बुधवार को सरकार ने कैबिनेट बैठक में एचपीसीएल-ओएनजीसी के विलय को मंजूरी दे दी। प्रधानमंत्री के अध्यक्षता में हुई बैठक में इस विलय को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी गई। इस बैठक में एचपीसीएल के 51 फीसदी की हिस्सेदारी ओएनजीसी को बेचने के प्रस्ताव पर सहमती बनी। ओएनजीसी पर इसके भुगतान का भार लगभग 28,000 करोड़ का पड़ेगा जिसे ओएनजीसी शेयरों और नगदी में अदा करेगा। हालांकि शेयर की कीमत तय करने का फॅार्मूला बाद में तय किया जाएगा। इस फैसले से पट्रोलियम उत्पादों के मार्केट पर दूरगामी असर देखने को मिल सकता है। सरकार अपने सभी 11 पेट्रोलियम कंपनियों की संख्या को घटाकर सिर्फ तीन करने के मूड में है।
एचपीसीएल का विनिवेश स्टै्रटेजी सेल के तहत करने का प्रस्ताव है। मंत्रियों का एक समिति गठित किया गया है जो हिस्सेदारी बेचने के तौर तरीकें, कीमतें और समय जैसे रोडमैप तय करेगा। इस समिति में वित्त मंत्री अरूण जेटली, सडक़ परिवहन मंत्री
नितिन गडकरी, तेल व प्राकृतिक गैस मंत्री
धर्मेंद्र प्रधान शामिल होंगे। गौरतलब है कि पेट्रोलियम मंत्रालय इस विलय के खिलाफ है। मंत्रालय का कहना है कि दोनों कंपनियों का मर्जर करने के बजाय एक्विजिशन किया जाना चाहिए। इससे एचपीसीएल सब्सीडरी बन जाएगी और उसकी अलग से पहचान बनी रहेगी। मंत्रालय का यह भी मानना है कि यह विलय फायदेमंद नहीं होगा।
पिछले कुछ दशकों में वैश्विक स्तर पर पेट्रोलियम उत्पादों की मार्केटिंग पर व्यापक बदलाव आया है। इसी के मद्देनजर ओएनजीसी व एचपीसीएल विलय के बाद पेट्रोलियम उत्पादों की मार्केटिंग को पूरी तरह से बदल सकती है।