छिंदवाड़ा. नागपुर. दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे नागपुर से छोटी टे्रन जल्द ही इतिहास बन जाएगी। पहले छिंदवाड़ा से इसका नाता टूटा और अब जल्द ही नागपुर के लिए भी यह पुरानी बात हो जाएगी। नैरोगेज मतलब छोटी टे्रन ने अपने साथ कई यादें सहेजे हुए है। कभी इस छोटी टे्रन को बैल खींचते थे तो कभी इसके इंजन को सड़कों पर दौड़ाया गया था। समय के साथ-साथ यह भी आधुनिक होती गई। हालांकि इसके पतन के लिए आधुनिकता को ही दोषी माना जाएगा, लेकिन यह समय की मांग थी। बहरहाल छोटी टे्रन जाने के बाद भी ये अपनी रोचकता और उपलब्धियों के लिए हमेशा याद की जाएगी।
मिली जानकारी के अनुसार नागपुर-छिंदवाड़ा लाइन का काम पूरा होने के बाद नागपुर विभाग में केवल 433 किमी छोटी रेल लाइन की पटरी बच जाएगी। इसे भी पूरी तरह से बड़ी लाइन में तब्दील करने की घोषणा कर दी गई है। वर्ष 1997 में इस लाइन को पूरी तरह से बड़ी लाइन में तब्दील करने की घोषणा हुई थी। गोंदिया-जबलपुर सेक्शन में गोंदिया से बालाघाट व बालाघाट से कटंगी गेज कनर्वशन का काम पूरा हो गया है। इसके बाद नागपुर-छिंदवाड़ा छोटी लाइन को बड़ी लाइन में तब्दील करने का ऐलान भी कुछ वर्ष पहले किया गया था। लगभग 149-522 किमी लाइन के गेज कनवर्जन का काम आरम्भ किया गया है। साथ ही छिंदवाड़ा-नैनपुर-मंडला फोर्ट182 किमी सेक्शन का कार्य भी वर्ष 2010-2011 की घोषणा के बाद शुरू हो गया है।
एक घंटे में तीन मील की रफ्तार
आज जब हम हाईस्पीड वाली बुलेट ट्रेनों के चलने का ख्वाब सच होता देख रहे हैं , वहीं एक समय ऐसा भी था जब बैल ट्रेन को खींचा करते थे। सन् 1828 में पहले गुजरात में नैरोगेज ट्रेन की शुरुआत हुई थी। इस ट्रेन में खींचने का काम इंजन नहीं बल्कि बैल किया करते थे। इस हल्की ट्रॉम-वे को एक जोड़ी बैलों से खिंचवाया जाता था। बैल बहुत ही आसानी से एक ट्राम-वे को खींचते थे, जिसमें पांच गुड्स कैरिज्स होते थे। ये बैल दो-तीन मील की दूरी एक घंटे में तय कर लेते थे।
नागपुर में रेलगाडिय़ों का सफर छोटी लाइन से ही शुरू हुआ था। भाप वाले इंजन 8 से 10 डिब्बों को लेकर मीलों सफर तय करते थे। यह सफर यात्रियों के लिए काफी सस्ता व सुविधाजनक होता था।
बड़ौदा के शासक खांडेराव गायकवाड़ ने एक अंग्रेज इंजीनियर मिस्टर ए.डब्ल्यू फोर्ड से पहली डभोई-मियागांव में रेल लाइन की डिजाइन तैयार करवाई और फिर इन्हीं की देखरेख में रेल लाइन का निर्माण किया गया। इस लाइन का 2 फीट 6 इंच का गेज था, जिस पर एक हल्की ट्राम-वे चलाई जाती थी।
इसके बाद यह तय किया कि इस नैरोगेज रेल लाइन पर भाप से चलने वाले इंजन चलाए जाएं। ब्रिटेन के शहर ग्लागो में यहां के लिए तीन इंजन तैयार किए गए।
मिस्टर फोर्ड ने इनकी डिजाइन तैयार की और इनका वजन छह टन था। इस लाइन पर चलने वाली नैरोगेज ट्रेन के लिए कुछ डिब्बे भी भारत में तैयार किए गए थे।
गुजरात में डभोई-मियागांव
नैरोगेज रेल लाइन अंतत: इंजन से चलने वाली ट्रेन के लिए 1862 में खोल दिया गया। इस तरह से भारत की पहली नैरोगेज लाइन बनाई गई। इसकी लम्बाई 8 मील (13 किमी) लंबी थी। भारत में पहले राजघरानों की अपनी रेल हुआ करती थी।
यादें सहेजी जाएंगी
एशिया में नैरोगेज का सबसे बड़ा जंक्शन और बंगाल-नागपुर रेलवे का फोकल प्वाइंट होने के चलते नैनपुर में म्यूजियम बनेगा। वहीं, जबलपुर-नैनपुर-कान्हा (चिरईडोंगरी) तक सप्ताह में एक बार हैरीटेज नैरोगेज ट्रेन का संचालन होगा।
आने वाले समय में म्यूजियम बनाया जाएगा। इसमें नैरोगेज ट्रेन के इंजन, डिब्बे और इतिहास का प्रदर्शन होगा।
जाने-माने पत्रकार मार्क टली नैरोगेज ट्रेन के सफर सफर पर किताब लिखेंगे।
बंगाल-नागपुर रेलवे के एक-एक लोको (भाप इंजन) नैनपुर और नागपुर रेल कार्यालय में हैं।
नैरोगेज ट्रेन के सामान्य श्रेणी के डिब्बों के अलावा स्लीपर, फस्र्ट क्लास कोच की विशेष डिजाइन है। इन्हें एक स्थान पर सहेजकर नैरोगेज ट्रेन पार्क तैयार किया जाएगा।
जबलपुर-शिकारा के बीच ट्रेन को ‘ट्वॉय ट्रेन’ के रूप में चलाया जाएगा। जबकि, जबलपुर से ग्वारीघाट के बीच सप्ताह में एक बार ट्रेन का संचालन करने की योजना है।