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मूवी रिव्यू

Movie review: “मांझी: द माउंटेन मैन” ट्रिब्यूट टु रीयल हीरो “दशरथ मांझी”

लीक से हटकर बनी यह फिल्म ऑडियंस के सामने दशरथ मांझी के प्यार, मेहनत, बेमिसाल हिम्मत और दृढ़निश्चय को बयां करती है…

Aug 22, 2015 / 01:07 pm

सुधा वर्मा

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स्टार कास्ट : नवाजुद्दीन सिद्दीकी, राधिका आप्टे, तिग्मांशु धूलिया, गौरव द्विवेदी
डायरेक्टर-प्रोड्यूसर : केतन मेहता
राइटर : केतन, अंजुम रजबअली, महेन्द्र जाखड़

केतन मेहता बायोपिक बनाने में महारत हासिल कर चुके हैं। वे अपनी फिल्म के किरदार के लिए इतनी रिसर्च करते हैं कि जब वह पर्दे पर आता है, तो दर्शकों के दिलो-दिमाग में बस जाता है। ऎसा ही कुछ उन्होंने अपनी मोस्ट अवेटेड मूवी “मांझी: द माउंटेन मैन” में किया है।

लीक से हटकर बनी यह फिल्म ऑडियंस के सामने दशरथ मांझी के प्यार, मेहनत, बेमिसाल हिम्मत और दृढ़निश्चय को बयां करती है। छोटे-से गांव गैहलोर (बिहार) के दशरथ का नाम बेशक आप न जानते हों, पर जब आपको पता चलता है कि गांव के इस साधारण, शोषित इंसान ने बिना किसी मदद या भरोसे के क्या करिश्मा कर दिखाया, तो यकीनन आपकी नजरों में दशरथ मांझी का अर्थ ही बदल जाएगा। भले ही मूवी रिलीज से पहले ऑनलाइन लीक हो गई हो, पर इसका असली मजा सिनेमाहॉल में है।
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दशरथ (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) पत्नी फगुनिया (राधिका आप्टे) से बेपनाह प्रेम करता है और उसके इर्द-गिर्द ही उसकी दुनिया घूमती है। लेकिन एक दिन पहाड़ से गिरकर फगुनिया घायल हो जाती है और चिकित्सा के अभाव में उसकी मृत्यु हो जाती है। यह हादसा दशरथ की जिंदगी बदल देता है। दशरथ को अहसास होता है कि यदि फगुनिया को गांव से थोड़ी दूर स्थित सरकारी अस्पताल समय पर पहुंचा दिया जाता, तो डॉक्टर उसकी जान बचा सकते थे। यहीं से शुरू होता है अकेले दम पर छैनी-हथौड़े से पहाड़ का सीना चीरने का सिलसिला।
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केतन ने कहानी में रूतबे वालों का दलितों का शोषण, प्रेम अगन, व्यवस्था पर प्रहार और संघर्ष को बेहद शानदार ढंग से पेश किया है। डायलॉग “भगवान के भरोसे मत बैठिए, क्या पता भगवान आपके भरोसे बैठा हो” फिल्म की जान है और इसकी थीम को बखूबी बयां करता है।
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नवाजुद्दीन ने अपने लाजवाब अभिनय से मांझी के किरदार को जिया है। उनके डायलॉग और स्क्रीन प्रजेंस दमदार है। कई फिल्मों में अपने एक्टिंग टैलेंट से सराहना बटोर चुकी राधिका, फगुनिया के रोल में खूब जमीं हैं, वहीं मुखिया के रोल में तिग्मांशु धूलिया छाप छोड़ते हैं। वे हर फिल्म के साथ बेहतर एक्टर साबित होते जा रहे हैं।

इंटरवल से पहले कहानी की रफ्तार कुछ धीमी है, पर यह कहानी की डिमांड भी है। केतन तारीफे-काबिल हैं कि उन्होंने ऎसे किरदार को बेहद ईमानदारी से पर्दे पर उतारा, जो बॉक्स ऑफिस पर कमाई के लिहाज से रिस्की सब्जेक्ट था। गीत-संगीत को कहानी और माहौल के मुताबिक ढाला गया है, पर ऎसा कोई गाना नहीं है, जो जुबां पर चढ़े। वैसे भी ऎसी कहानी में गाने फिल्म की रफ्तार में बाधक बनते हैं। फिल्म रीयल हीरो दशरथ मांझी को सच्चा ट्रिब्यूट है।

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