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झालावाड़

डिजिटल युग में भी यहां नीम के पेड़ से मिलता है शादियोंं का न्योता,बरसों पुरानी परंपरा : निमंत्रण देने के लिए घर-घर नहीं जाना पड़ता

झालावाड़Apr 30, 2024 / 07:00 pm

jagdish paraliya

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  • सोशल मीडिया के जमाने में, जहां शादी समारोह के निमंत्रण पत्र ऑनलाइन भेजे जाने लगे हैं, वहीं झालावाड़ जिले के सुनेल क्षेत्र अरनिया सहित ग्रामीण इलाकों में आज भी शादी समारोह और अन्य कार्यक्रमों के निमंत्रण पत्र नीम के पेड़ पर टांग देते हैं। क्षेत्र के अरनिया गांव के भील बस्ती में नीम के पेड़ पर शादी के कार्ड टांग जाते हैं। जहां शादी का निमंत्रण देने के लिए घर-घर नहीं जाना पड़ता है।
  • सोशल मीडिया के जमाने में, जहां शादी समारोह के निमंत्रण पत्र ऑनलाइन भेजे जाने लगे हैं, वहीं झालावाड़ जिले के सुनेल क्षेत्र अरनिया सहित ग्रामीण इलाकों में आज भी शादी समारोह और अन्य कार्यक्रमों के निमंत्रण पत्र नीम के पेड़ पर टांग देते हैं। क्षेत्र के अरनिया गांव के भील बस्ती में नीम के पेड़ पर शादी के कार्ड टांग जाते हैं। जहां शादी का निमंत्रण देने के लिए घर-घर नहीं जाना पड़ता है।
  • गांव में एक नीम के पेड़ पर शादी का निमंत्रण कार्ड गांव के भील समाज में यह परंपरा है। कार्ड में जिस-जिस के नाम लिखे होते हैं वे न्योते को स्वीकार कर शादी में शामिल होने पहुंच जाते है। लोग इन्हें पढक़र वापस वहीं टांग देते हैं। इसके अलावा भागवत कथा, मुंडन संस्कार आदि के निमंत्रण पत्र व मृत्यु आदि की सूचनाएं लटकाई जाती है। गांव में ऐसा कोई भी कार्यक्रम हो तो भील समाज के लोग निमंत्रण पत्र नहीं छपवाते। इसी तरह से बुलावा दिया जाता है। वहीं बाहर से आने वाले निमंत्रण पत्र भी यहां एक ही कार्ड पर सभी के नाम लिखकर लटकाए जाते है। यह परंपरा बरसों से चली आ रही है।
  • बारिश में मकान के छज्जे के नीचे लटकाते हैं
  • अरनिया गांव के भील समाज के अर्जुन सिंह भील ने बताया कि इस पेड़ के सामने ही गांव के समाज के कच्चे मकान के नीचे तार बांध रखा है जहां बारिश के समय शादियों की पत्रिकाएं लटका दी जाती है। अरनिया गांव निवासी बजरंग भील, कमलेश भील, मोड़सिंह भील, बालचंद भील, गोपाल भील, नारायण सिंह भील, कालूलाल भील, भगवान सिंह भील, मदनलाल भील, करणसिंह भील, भेरुलाल भील, तूफान सिंह भील, देवीलाल भील, घीसालाल भील और भगवान भील आदि ने बताया कि इस गांव में भील समाज के लगभग 40 परिवार है। जिनकी 600 की आबादी है। यहां सभी कार्ड नीम के पेड़ पर ही लटके रहते हैं। गांव में प्रतिदिन सुबह साढ़े छह से नौ बजे तक और शाम को साढ़े छह बजे से नौ बजे तक चौपाल लग जाती है। इस दौरान शादियों की पत्रिकाएं देखी जाती है।
  • पैसा और समय दोनों की बचत
  • लोगों का मानना है कि इस परंपरा से पैसा और समय दोनों की बचत होती है। एक ही कार्ड से पूरे गांव को निमंत्रण मिल जाता है। वहीं एक ही स्थान पर कार्ड लगाने से घर-घर जाने में लगने वाला समय भी बच जाता है।

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