चेन्नई। तमिलनाडु के विभिन्न क्षेत्रों में लोकप्रिय और प्राचीन खेल जलीकट्टू के आयोजन पर रोक लगाने को लेकर की जा रही प्रदर्शन ने उग्र रूप धारण कर लिया है। यह प्रदर्शन 1960 में राज्य में हिंदी विरोधी आंदोलन की याद दिला रही है। भारी संख्या में युवा वर्ग पशु अधिकार संगठन ‘पेटा’ पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं।
केन्द्र और राज्य सरकार के खिलाफ प्रदर्शन
मदुरै, चेन्नै और कोयंबटूर में मंगलवार को जारी प्रदर्शन बुधवार को भी जारी रहा। पूरे राज्य में प्रदर्शनकारियों के प्रति समर्थन बढ़ता जा रहा है। युवा वर्ग पोंगल के पहले मनाए जा रहे परंपरागत खेल जलीकट्टू को केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा शुरू करवाने में विफल रहने पर विरोध जता रहे हैं। लोग पेटा के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया है, जिसकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने इस खेल को प्रतिबंधित कर दिया।
चेन्नै के मरीना बीच पर उमड़े हजारों लोग
चेन्नै के एसआरएम यूनिवर्सिटी के छात्रों ने उनके समर्थन में अपने संस्थान के बाहर प्रदर्शन करने की घोषणा की है। वहीं, चेन्नै के मरीना बीच पर मंगलवार को हजारों युवा लोग इकट्ठे हो गए। वे रात से ही विरोध स्वरूप प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रदर्शनकारियों ने मुख्यमंत्री ओ पनीरसेल्वम के हस्तक्षेप को भी नजरअंदाज करते हुए प्रदर्शन जारी रखा है।
क्यों लगाई गई रोक?
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु में जलीकट्टू के आयोजन पर मई 2014 में रोक लगा दी थी। इसके बाद से ही लोग केंद्र सरकार से जलीकट्टू के आयोजन के लिए जरूरी कानूनी कदम उठाने की मांग कर रहे हैं। पेटा के खिलाफ लोगों की नाराजगी इसलिए है क्योंकि उसकी ही याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया था।
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