बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और नेताओं में पार्टी छोड़ने की होड़ लगी हुई है। कांग्रेस में प्रत्याशी घोषित होने के पहले ही 4 मार्च को जिला पंचायत अध्यक्ष अरुण सिंह चौहान, सभापति राजेश्वर भार्गव, राहुल सोनवानी, जिला अध्यक्ष पिछड़ा वर्ग कांग्रेस रामनारायण राठौर ने पार्टी छोड़कर भाजपा ज्वाइन कर ली थी। इनमें अरुण सिंह चौहान पूर्व मुयमंत्री भूपेश बघेल और कोटा विधायक अटल श्रीवास्तव के करीबी माने जाते रहे है। जिला पंचायत चुनाव में कोटा क्षेत्र से ही चुनाव जीत कर उन्होंने पंचायत की राजनीति शुरू की थी।
इसके बाद से लगातार स्थानीय और प्रदेश स्तर के कांग्रेसियों के भाजपा ज्वाइन करने का सिलसिला जारी है। इनमें प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष और पूर्व महापौर वाणी राव, प्रदेश कांग्रेस के कार्यसमिति के सदस्य विष्णु यादव, कांग्रेस के लोकसभा संयोजक संतोष कौशिक, पूर्व विधायक चंद्रप्रकाश वाजपेयी, सामाजिक संगठनों से जुड़े और कांग्रेस समर्थक डॉ प्रदीप शुक्ला आदि शामिल हैं। साथ ही तखतपुर जनपद पंचायत अध्यक्ष राजेश्वरी जुगल कौशिक, जनपद उपाध्यक्ष दिव्या नितेश मिश्रा, पूर्व जनपद अध्यक्ष दिनेश कौशिक, जनपद सदस्य रवि सोनी, पूर्व जनपद सदस्य राकेश तिवारी समेत कई कांग्रेसी भाजपा में शामिल हो चुकी है।
जनता और समर्थकों पर प्रभाव का लाभ मिलने की उमीद…
भाजपा नेताओं का कहना है कि जो भी लोग कांग्रेस छो?कर आए हैं, उनमें अधिकतर जनप्रतिनिधि और पदाधिकारी या सामाजिक कार्य से जुड़े हैं। उनका जनाधार अपने क्षेत्र में है। भाजपा में उनके शामिल होने से पार्टी को भी जनाधार बढ़ाने में मदद मिल सकती है। कुछ बड़े पदाधिकारी भी हैं, जिनके पार्टी के अंदर भी समर्थक हैं। उनके आने से दूसरे दल में असन्तोष बढ़ने का भी लाभ मिल सकता है। जैसे कि संतोष कौशिक की गिनती बड़े कुर्मी नेताओं में होती है। वे तखतपुर विधानसभा सीट से 2008, 2013 और 2018 में चुनाव लड़ चुके और उनका वोट प्रतिशत भी अच्छा रहा है।
मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की कोशिश, पर इससे समर्थक प्रभावित नहीं होते..?
दूसरी पार्टी के नेताओं को शामिल करने को मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने का प्रयास भी माना जाता है। कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता अभयनारायण राय का कहना है कि जनता या समर्थक किसी नेता को दलीय आधार पर समर्थन देते हैं। उस नेता या जनप्रतिनिधि के अन्य दल में जाने से जरूरी नहीं कि जनता भी उसका समर्थन करे।
कांग्रेस का मानना-अवसरवादियों के पार्टी में रहने से ज्यादा नुकसान…
इस मुद्दे पर कांग्रेस की राय है कि जिन्होंने पार्टी छोड़ी, वे वैसे ही पार्टी विरोधी थे। ऐसे में उनके रहने का भी कोई लाभ पार्टी को नहीं होता, बल्कि नुकसान की आशंका ज्यादा थी। पूर्व विधायक सहित कुछ नेताओं का उदाहरण भी दिया जाता है, जो कांग्रेस में रहकर भी निष्₹िय थे और सिर्फ नाम के लिए पार्टी में शामिल थे। लेकिन ऐसे लोग जो वर्तमान में भी पदाधिकारी थे और उनको लोकसभा चुनाव में जिमेदारी दी जा चुकी थी, उनके पार्टी छोड़ने के प्रभाव पर कांग्रेस नेताओं का कहना है कि पद और जिमेदारी मिलने के बाद भी पार्टी छोड़ने वाले नेताओं का निजी स्वार्थ ही हो सकता है। हालांकि कांग्रेस शहर अध्यक्ष विजय पांडे मानते हैं कि चुनाव के दौरान एक-दूसरे दलों में नेताओं के शामिल होने की प्रक्रिया चलती रहती है, इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता।