कोर्ट के मुताबिक, जब किसी नागरिक की वैवाहिक स्थिति की व्याख्या पर्सनल लॉ संवैधानिक और अधिकारों यानी दोनों कानूनों के तहत की जाती है, तब धार्मिक रीति रिवाजों को भी समान महत्व दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि सामाजिक और धार्मिक रीति रिवाज, प्रथाएं समेत संविधान से मान्यता प्राप्त कानून के स्रोत समान रहे हैं।
पहले से शादीशुदा है युवक
न्यायमूर्ति ए आर मसूदी और न्यायमूर्ति अजय कुमार श्रीवास्तव प्रथम की खंडपीठ ने यह टिप्पणी की है। कोर्ट ने एक व्यक्ति के खिलाफ अपहरण के मामले को रद्द करने और हिंदू-मुस्लिम कपल के रिश्ते में हस्तक्षेप न करने का निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां कीं। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि याची मुस्लिम व्यक्ति पहले से ही मुस्लिम महिला से शादीशुदा है। युवक की पांच साल की बेटी है। कपल ने दायर की थी याचिका
सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि मुस्लिम व्यक्ति की पत्नी को किसी हिंदू महिला के साथ उसके पति के लिव-इन रिलेशनशिप में रहने से कोई आपत्ति नहीं है। कोर्ट ने पाया कि याचिका मूलरूप से सहमति संबंध को वैध बनाने के लिए दाखिल की गई थी।